Ayurveda Medicine Treatment In Delhi


What Is Ayurveda Medicine?


Ayurveda medicine is an Indian traditional medicine. Ayurveda medicine includes herbal and herbo - mineral preparations, described in Indian traditional Granthas (Holy Books) like Vedas and Upanishads. Later on all these medicines are briefly described in Charak Samhita, Sushrut Samhita, Ashtang Hriday etc. as per diseases and pathology.


All medicinal plants are described in Nighantus (Indian Traditional Encyclopedia of medicinal plants), which are used as whole or any part of the plant in Ayurveda medicines. Raj nighantu, Bhavprakash nighantu, Adarsh Nighantu etc. are the nighantus in which pharmacokinetics n pharmacodynamics of medicinal plants is described briefly according to Ayurveda.

Plants are the only source in the universe which can convert inorganic energy into organic energy. So only we use vegetables and fruits as our food to gain energy and different parts or whole plants as medicine. To make plants easily digestible, convenient to have a large quantity of medicinal plant in low dose, or to improve its specific quality or absorption in the body after consumption, different methods of herbal preparations are described in Bhaishajyakalpana.

With the same principle, inorganic metals are processed with herbal preparations, to convert it in organic (Edible form of metals). So only though Ayurveda medicines contain some quantity of metals, Ayurveda medicine doesn’t have any adverse effect or poisonous effects of metal on the liver or any other body organs. All these Indian traditional pharmaceutical processes – Ras Shastra is described briefly by Nagarjuna (Founder of metallurgy) for the first time. All these metal-related Indian traditional pharmaceutical procedures are described in Ras Tantra Sar, Ayurveda Sar Sangrah, Ras Ratn Samuchhay, etc.

So basically Ayurveda is a scientific Indian Traditional Medicine, to serve globally with the grace of God Dhanwantari.


Ayurvedic Gynaecological Treatment In Delhi

 Ayurvedic Gynaecological Treatment In Delhi


        Indian Traditional Rituals For Menstruating Woman

    रजस्वला का अर्थ हे, जिसे रजोदर्शन अर्थात, मासिक स्त्राव हो रहा है, उनकी परिचर्या!

          हमारी प्राचीन संस्कृति में मासिक स्त्राव के दरमियान विशेष परिचर्या का पालन किया जाता था। जिसमे रसोई घर मे प्रवेश न करना, अंधेरे कमरे मे रहना, चटाई पर सोना, हल्का खाना खाना, मंदिर मे नहीं जाना, पुजा पाठ न करना, योग प्राणायाम व्यायाम न करना, दोडधाम न करना इन सब नियमों का  मासिक स्त्राव के दरमियान पालन करना होता था। अभी तक माना जा रहा था, की ये सब नियमों का पालन करना एक स्त्री का शोषण करने समान है।

          लेकिन ध्यान से देखा जाए तो समझ में आएगा की, जब तक इन सारे नियमों का पालन किया जा रहा था तब तक स्त्री रोगों की संख्या सीमित थी; और अब जब इन सब नियमों का पालन करना बंद हो चुका है, तो इस समय में स्त्री रोगों को बढ़ते हुये हम देख रहे है। इन सारे नियमों का वर्णन रजस्वला परिचर्या के अंतर्गत आयुर्वेद की अनेक संहिताओं मे है।

 Scientific View Of Indian Traditional Rituals For Menstruating Woman

            क्यूँ थी ये प्रथाएँ हमारी संस्कृति में? इन सब प्रथाओं का वैज्ञानिक बेस है, धर्म के साथ जोड़ने का कारण है इन प्रथाओं का पालन आसानी से हो सके। लेकिन इसे अंधश्रद्धा समझकर साइड मे रखा गया है। इन सारे नियमों का वर्णन रजस्वला परिचर्या के अंतर्गत आयुर्वेद की अनेक संहिताओं मे है। जब स्त्री को मासिक स्त्राव शुरू होता है, तब उसका गर्भाशय जख्मी होता है। उस समय आराम की सख्त जरूरत होती है, इसी कारण उस स्त्री को घर के काम  से, रसोई से दूर रखा जाता था, महीने मे चार दिन की तो महिलाओं को छुट्टी मिले! नहीं तो दिन रात महिलाएं तभी काम करती थी, अभी काम करती है।

जब भी हम बीमार होते है, हल्का खाना खाते है, इसी कारण रजस्वला स्त्रियों को हल्का भोजन दिया जाता था। गर्भाशय मुख इस समय मे खुल जाता है, तो इन्फेक्शन की संभावना भी बढ़ जाती है, इसी कारण रजस्वला स्त्रियों को अलग से (Isolation) रहना होता था। ताकि उनको संक्रमण से बचाया जा सके। यह बात आज जब कोरोना की महामारी से लड़ रहे है तब हमारी संस्कृति की वैज्ञानिकता समझ मे आ रही है।

बाहर जाने से रजस्वला स्त्रियों को रोका जाता था, क्यूंकी उस समय जंगली जानवरों का भय होता था। रक्त की गंध से जंगली जानवर आकर्षित होना स्वाभाविक है। मंदिर न जाना, पुजा पाठ नहीं करना चाहिए। पुजा, पाठ करने से, मंदिर मे प्रार्थना करने से शरीर के ऊर्जा की ऊर्ध्वगती मतलब ऊपर की और होती है, जब की ऐसे समय मे शरीर के ऊर्जा की अधोगति मतलब नीचे की ओर होती है, जो अधोगति होना जरूरी भी है, तभी सारे दोष गर्भाशय से बाहर निकल जाएंगे। इसीलिए रजस्वला स्त्रियों को पुजा पाठ वर्जित कहा गया है।

इस समय मे साज शृंगार भी नहीं करना चाहिए। साज शृंगार से पुरुष स्त्री की तरफ आकर्षित होते है, और रजोस्त्राव दरमियान संभोग करने से संक्रमण की संभावना होती है। 

इन सारे नियमों का पालन हमे आज की तारीख मे भी जितना हो सके करना चाहिए। ताकि प्रजनन संस्था का कार्य सुचारु रूप से चलता रहे, महिलाओं को किसी बीमारी का सामना न करना पड़े।


PCOD Ayurvedic Treatment In Delhi

PCOD Ayurvedic Treatment In Delhi

PCOD

     What Is PCOD?

        स्त्री को स्त्रीत्व, मातृत्व प्रदान करनेवाला स्त्री शरीर का महत्वपूर्ण अंग, यानि प्रजनन संस्था! अब स्त्री शरीर जब अलग है, तो उसके रोग भी अलग है....इसीलिए हमे स्त्रीरोग विशेषज्ञों की जरूरत पड़ती है। आज की तारीख का स्त्रियॉं का ज्वलंत प्रश्न है......पीसीओडी! polycystic ovarian disorder....
 
        क्या है ये PCOD? क्या लक्षण है? क्या चिकित्सा है? इसी बारे आज मै चर्चा कर रही हूँ। PCOD मे प्रजनन संस्था का एक अंग अंडाशय(Ovary) पर पनि की गाँठे(Cysts) बनते है, इसीलिए इस व्याधि को polycystic ovarian disorder कहा जाता है। इस व्याधि का महत्वपूर्ण कारण है, स्त्री शरीर मे androgens मतलब पुरुष हार्मोन्स की मात्र अधिक होना है। जिस कारण उसके स्वतः के प्रजनन संस्था संबन्धित हार्मोन्स मे अनियमितता आती हे, और अंडाशय पर सिस्ट बनते है। ये सिस्ट के कारण हार्मोन्स की अनियमितता बढ़ती जाती है, और साथ मे सिस्ट भी..........यह विषचक्र ऐसेही चलता रहता है।
         

    Causes Of PCOD

        पीसीओडी होने के मुख्य कारणो मे शरीर को ज्यादा आराम देना, मतलब की शारीरिक कष्टों की कमी, जंक फूड का सेवन, मानसिक तनाव, पकेज्ड फूड का सेवन इनका समावेश होता है। पीसीओडी की पारिवारिक हिस्टरी हो, तो भी आपको पीसीओडी होने की संभावना बढ़ जाती है। मासिक की अनियमितता, वजन बढ़ना, चेहरे पर बल आना(Hirsutism), बालों का पतला होना, स्किन टग्स ये सब पीसीओडी के लक्षण है।
गर्भ ना रहना (इन्फेर्टिलिटी – वंध्यत्व) का यह एक सबसे महत्वपूर्ण कारण है। हर दस मे से एक महिला मे यह व्याधि पाया जाता है। पीसीओडी ना हो और हमारे हार्मोन्स सुचारु रूप से कम करते रहे इसके लिए हमे नियमित रूप से 30 से 60 मीन का व्यायाम, योग, प्राणायाम करना आवश्यक है। योग मे आप सूर्यनमस्कार, सर्वांगासन, मत्स्यासन, अर्धमत्स्येंद्रासन, पश्चिमोत्तानासन, वज्रासन, सिंहासन, भुजंगासन, धनुरासन का अभ्यास कर सकते है। प्राणायाम मे आप अनुलोम विलोम का अभ्यास कर सकते है।साथ ही जंक फूड, पकेज्ड फूड टालना भी जरूरी है। मानसिक तनाव से मुक्ति के लिए आप योगनिद्रा का अभ्यास कर सकते है।
     

    Ayurvedic Treatment Of PCOD

     चिकित्सा रूप मे न्यूरोथेरपी, पंचकर्म चिकित्सा और औषधि चिकित्सा द्वारा मासिक की एक साइकल मे ही रोग का नष्ट होना संभव है। अगर आप पीसीओडी से ग्रस्त नहीं है, तो आप सावधानी बरतिए। और इस व्याधि से ग्रस्त है तो जल्द से जल्द चिकित्सा करवाए, ये मेरा आपसे अनुरोध है।

Ksharsutra, Ano Rectal Treatment In Delhi.

Ano Rectal Diseases Treatment In Ayurveda, Delhi

गुदरोग में धूपन चिकित्सा का महत्व:


   Complications In Controlling Ano Rectal Infections 

       गुदरोग मे इन्फ़ैकशन कंट्रोल कर पाना बहोत ही मुश्किल होता है। क्योंकि शरीर की सारी गंदगी मल के रूप मे गुड द्वार से ही बाहर निकलती है। तो यहाँ के इन्फेक्शंस का नियमन करना लोहे के चने चबाने बराबर होता है। बार बार इन्फेक्शन होता रेहता है। यह इन्फेक्शंस का रिकरंस रोकने के लिए, ज़ख़म भरने के लिए, वेदना शमन के लिए, धूपन एक बहोत ही कारगर चिकित्सा है।
आयुर्वेद यह आयुः मतलब जीवन का वेद है। तो प्राचीन संस्कृति मे जो भी कार्यों का वर्णन किया गया है, वह आयुर्वेद के अनुसार ही है। प्राचीन संस्कृति मे जो यज्ञ, अग्निहोत्र किए जाते थे, वो भी धूपन का ही एक प्रकार था।

    How To Do Dhoopan?

      ये धूपन कराते कैसे है? कोयला या गोबर के उपलों को जलाकर उसका अंगार बनाना होता है। फिर वो धूपदानी धूपन टेबल (एक टेबल जिसमे बीच मे होल किया हो) के नीचे रखनी है। धूपन टेबल पर बैठना है, और थोड़ा थोड़ा धूपन द्रव्य अंगार मे डालना है। जिससे अंगार मे से धुआ निकलेगा, जो गुदा के इन्फेक्शन पर काम करेगा।
      

   Scientific View Of Dhoopan

       धूपन किटाणुनाशक और जीवाणुनाशक होता है। धूपन द्वारा रक्तवाहिनियों का विस्तार होता है। कोशिकाओं मे परफ्यूजन योग्य मात्र मे होने से ओक्सीजनेशन बढ़ जाता है। इस कारण सूजन और इन्फ़ैकशन मे धूपन द्वारा लाभ होता है। धूपन रक्तस्तंभक, वेदना शमन का भी कार्य करता है।

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