Ayurvedic Gynaecological Treatment In Delhi

 Ayurvedic Gynaecological Treatment In Delhi


        Indian Traditional Rituals For Menstruating Woman

    रजस्वला का अर्थ हे, जिसे रजोदर्शन अर्थात, मासिक स्त्राव हो रहा है, उनकी परिचर्या!

          हमारी प्राचीन संस्कृति में मासिक स्त्राव के दरमियान विशेष परिचर्या का पालन किया जाता था। जिसमे रसोई घर मे प्रवेश न करना, अंधेरे कमरे मे रहना, चटाई पर सोना, हल्का खाना खाना, मंदिर मे नहीं जाना, पुजा पाठ न करना, योग प्राणायाम व्यायाम न करना, दोडधाम न करना इन सब नियमों का  मासिक स्त्राव के दरमियान पालन करना होता था। अभी तक माना जा रहा था, की ये सब नियमों का पालन करना एक स्त्री का शोषण करने समान है।

          लेकिन ध्यान से देखा जाए तो समझ में आएगा की, जब तक इन सारे नियमों का पालन किया जा रहा था तब तक स्त्री रोगों की संख्या सीमित थी; और अब जब इन सब नियमों का पालन करना बंद हो चुका है, तो इस समय में स्त्री रोगों को बढ़ते हुये हम देख रहे है। इन सारे नियमों का वर्णन रजस्वला परिचर्या के अंतर्गत आयुर्वेद की अनेक संहिताओं मे है।

 Scientific View Of Indian Traditional Rituals For Menstruating Woman

            क्यूँ थी ये प्रथाएँ हमारी संस्कृति में? इन सब प्रथाओं का वैज्ञानिक बेस है, धर्म के साथ जोड़ने का कारण है इन प्रथाओं का पालन आसानी से हो सके। लेकिन इसे अंधश्रद्धा समझकर साइड मे रखा गया है। इन सारे नियमों का वर्णन रजस्वला परिचर्या के अंतर्गत आयुर्वेद की अनेक संहिताओं मे है। जब स्त्री को मासिक स्त्राव शुरू होता है, तब उसका गर्भाशय जख्मी होता है। उस समय आराम की सख्त जरूरत होती है, इसी कारण उस स्त्री को घर के काम  से, रसोई से दूर रखा जाता था, महीने मे चार दिन की तो महिलाओं को छुट्टी मिले! नहीं तो दिन रात महिलाएं तभी काम करती थी, अभी काम करती है।

जब भी हम बीमार होते है, हल्का खाना खाते है, इसी कारण रजस्वला स्त्रियों को हल्का भोजन दिया जाता था। गर्भाशय मुख इस समय मे खुल जाता है, तो इन्फेक्शन की संभावना भी बढ़ जाती है, इसी कारण रजस्वला स्त्रियों को अलग से (Isolation) रहना होता था। ताकि उनको संक्रमण से बचाया जा सके। यह बात आज जब कोरोना की महामारी से लड़ रहे है तब हमारी संस्कृति की वैज्ञानिकता समझ मे आ रही है।

बाहर जाने से रजस्वला स्त्रियों को रोका जाता था, क्यूंकी उस समय जंगली जानवरों का भय होता था। रक्त की गंध से जंगली जानवर आकर्षित होना स्वाभाविक है। मंदिर न जाना, पुजा पाठ नहीं करना चाहिए। पुजा, पाठ करने से, मंदिर मे प्रार्थना करने से शरीर के ऊर्जा की ऊर्ध्वगती मतलब ऊपर की और होती है, जब की ऐसे समय मे शरीर के ऊर्जा की अधोगति मतलब नीचे की ओर होती है, जो अधोगति होना जरूरी भी है, तभी सारे दोष गर्भाशय से बाहर निकल जाएंगे। इसीलिए रजस्वला स्त्रियों को पुजा पाठ वर्जित कहा गया है।

इस समय मे साज शृंगार भी नहीं करना चाहिए। साज शृंगार से पुरुष स्त्री की तरफ आकर्षित होते है, और रजोस्त्राव दरमियान संभोग करने से संक्रमण की संभावना होती है। 

इन सारे नियमों का पालन हमे आज की तारीख मे भी जितना हो सके करना चाहिए। ताकि प्रजनन संस्था का कार्य सुचारु रूप से चलता रहे, महिलाओं को किसी बीमारी का सामना न करना पड़े।


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